साभार: दोपहर का सामना
कोरोना की दूसरी लहर बेहद कमजोर पड़ गई है। देशभर में पीड़ितों और मृतकों के आंकड़ों में कमी आ रही है। गुजरात से अब किसी श्मशान का लोहा पिघलने की खबर नहीं आ रही, मध्य प्रदेश से मरनेवालों की दुर्दशा का कोई समाचार नहीं है, उत्तर प्रदेश में अब ऑक्सीजन की कमी से मौतें नहीं हो रही हैं। हां, तब भी वहां गंगा में लाशों के बहने का सिलसिला अभी थमा नहीं है, नदियों के किनारे बालू में दबे शवों के मिलने का क्रम अभी जारी है। कुल मिलाकर, महाराष्ट्र जहां कोरोना की तीसरी लहर से मुकाबला करने को कमर कस रहा है, ब्लैक फंगस की चुनौती से निपटने के लिए तैयार हो चुका है, वहां देश के तमाम राज्य कोरोना वायरस की दूसरी लहर में प्रबंधन के कमजोर पक्ष पर मिट्टी डालने की कवायद में जुटे हैं, तो वहीं केंद्र की सत्ताधारी पार्टी फिजूल के मुद्दों पर जनता को अब भी गुमराह करने में जुटी है।
देश के तमाम भाजपा शासित राज्यों की सरकारों ने पिछले वर्ष भर में यह दर्शाने का प्रयास किया था कि जो कोरोना वायरस महीने दो महीने में चीन के वुहान शहर से पूरी दुनिया में पैâल गया, वो हिंदुस्थान में आने के बावजूद वर्ष भर तक उनके राज्यों में दाखिल ही नहीं हुआ। दरअसल, तथ्यों पर गौर करें तो साफ नजर आता है कि इन राज्यों ने एक बड़े खतरे को लेकर आंखें मूंदें रखीं और राजनीतिक लाभ के लिए केवल गैर-भाजपाई राज्यों को कटघरे में खड़ा करते रहे। उस महाराष्ट्र को भी, जिसने शुरुआत से ही, न केवल कोरोना को गंभीरता से लिया, बल्कि उसका मजबूती से सामना भी किया। महाराष्ट्र ने मरीजों के बढ़ते आंकड़ों की परवाह नहीं की, टेस्ट जारी रखे, आलोचनाएं सहीं, पर लोगों की मौत का आंकड़ा बढ़ने नहीं दिया। यहां किसी श्मशान में कतारें नहीं लगीं, टोकन नहीं बांटने पड़े, न ही श्मशान का लोहा पिघला। यहां की किसी नदी में लाशें नहीं बहीं, न ही लाशों का ढेर लगा। महाराष्ट्र में एक बेहतर नीति ने एक बड़ी अनहोनी पर कारगर तरीके से काबू पा लिया। जिससे राज्य के किसी अस्पताल के बाहर मरीजों की भीड़ नहीं लगने पाई, जबकि अधिकांश भाजपा शासित प्रदेशों में कोरोना की वजह से हालात खराब होते गए। जानकार भी मानते हैं कि इन राज्यों ने शुरुआत से ही कोरोना को काफी हल्के में लिया था और अंत तक आंकड़ों की हेराफेरी करके अपने राज्यों को सुरक्षित बताते रहे थे।
हो सकता है आज भी इन राज्यों में आंकड़ों की हेराफेरी जारी हो। ऐसा प्रतीत होने के पुख्ता कारण भी हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो देश में कोरोना मरीजों की संख्या में बेतहाशा कमी के बावजूद मृतकों का आंकड़ा जस-का-तस न बना रहता। शुक्रवार के आंकड़ों पर ही गौर कर लीजिए। उस दिन देश में ४४ दिनों में सबसे कम, करीब १ लाख ८६ हजार कोरोना के नए मरीजों की पहचान हुई थी, तो उसी दौरान मरनेवालों का आंकड़ा ३,६६० रहा था। जिस वक्त देश में ४ लाख या उससे अधिक मरीज मिल रहे थे, तब भी देश में कोरोना से होनेवाली मौतों का आंकड़ा ४ हजार के इर्द-गिर्द ही रहा करता था। अब जब प्रतिदिन नए मरीजों के मिलने का आंकड़ा दो लाख से काफी नीचे आ गया है, तब भी मरनेवालों के आंकड़े में मामूली-सी गिरावट प्रश्न तो खड़े करती ही है। अर्थात, नए मरीजों का आंकड़ा आधे से भी कम होने के बावजूद यदि मौतों के आंकड़े में कोई खास अंतर नहीं आता तो यह मोर्टेलिटी रेट दोगुनी होने का इशारा नहीं है क्या? यदि यह सही है तो अभी तक किसी भी रिपोर्ट में यह खुलासा क्यों नहीं किया गया है? केंद्र ने क्यों नहीं बताया कि पिछले महीने-डेढ़ महीने में हिंदुस्थान में कोरोना की मोर्टेलिटी रेट दुगुनी हुई है? इस संबंध में आ रही तमाम खबरों पर गौर करें तो जाहिर होता है कि कई बड़े राज्य, खासकर यूपी, एमपी, बिहार, गुजरात और कर्नाटक जैसे भाजपा शासित राज्य, अब भी कोरोना मरीजों के आंकड़ों के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं। यदि ऐसा है तो ऐसा करके वे कुछ वक्त के लिए तो खुद को कोरोना प्रबंधन में सफल साबित कर सकते हैं, अपने आलाकमान की गाज गिरने से भी बच सकते है, परंतु इससे सच्चाई हमेशा के लिए तो छिपाई नहीं जा सकती। इसी कवायद ने इन राज्यों की जनता को खतरे में डाला है। दूसरी लहर की कोरोना की त्रासदी ने यह साबित भी कर दिया है। दूसरी लहर का सर्वाधिक खामियाजा इन्हीं राज्यों ने भुगता है। बावजूद इसके ये बड़े-बड़े राज्य अपनी बड़ी-बड़ी गलतियों को सुधारने को तैयार नहीं हैं। यदि खुद को अपने राज्य का सफल नेतृत्व बताने के लिए वे अब भी कोविड मरीजों के आंकड़ों को दबाने का प्रयास करते हैं, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा। वैसे भी कोरोना पर इनके कुप्रबंधन का प्रमाण आए दिन जनता के सामने आ ही रहा है, कहीं गुजरात के अस्पतालों में बेहाल मरीजों की तस्वीर दिख रही है, तो कहीं जनता को वैक्सीन की अलग-अलग डोज दी जा रही है। हर हाल में इस कुप्रबंधन की बलि जनता ही चढ़ रही है।
जहां तक केंद्र सरकार का सवाल है, तो उसे वैश्विक स्तर पर अपनी छवि चमकाने, टूल-किट जैसे अनावश्यक मुद्दों पर विपक्ष को घेरने या हर आवश्यक मुद्दे से देश का ध्यान बंटाने से फुर्सत ही नहीं है। वो अभी तक सुनिश्चित ही नहीं कर पा रही है कि इस महामारी से निपटने के लिए क्या करना है। गत वर्ष कोरोना की शुरुआत में ही आनन-फानन में बिना किसी से मशविरे के महीनों का लॉकडाउन लगानेवाली केंद्र सरकार ने इस साल सब कुछ राज्यों के पाले में डालकर खुद का सारा ध्यान ५ राज्यों के विधानसभा और यूपी के पंचायत चुनाव पर लगाए रखा। नतीजा क्या हुआ, यह सारा देश देख ही चुका है। हालात जब बेकाबू हो गए और चुनाव निपट गए तब जाकर प्रधानमंत्री मोदी ने शासन-प्रशासन से मैराथन वीडियो कॉन्प्रâेंसिंग की, परंतु उसका नतीजा क्या निकला, केंद्र द्वारा कोरोना को लेकर क्या कदम उठाए गए, ये कोई नहीं जानता। कोरोना की इस दूसरी लहर से निपटने और संभाव्य तीसरी लहर को लेकर केंद्र की क्या नीति है, यह किसी को नहीं पता। कोरोना पर ‘मन की बात’ सुनने को देश बेताब है, पर वे चुप्पी साधे हुए हैं। वैक्सीन कहां से आएगी, कितनी आएगी, आएगी भी या नहीं? ब्लैक फंगस से निपटने के लिए इंजेक्शन कहां से आएंगे और कितने आएंगे, और कब तक आएंगे? इस पर अब तक केंद्र का कोई दिशा-निर्देश या जवाब जनता को नहीं मिल पाया है। लिहाजा, राज्य अपने बूते पर ही वैक्सीन और इंजेक्शन जुटाने की कवायद में लगे हैं। वहां भी कुछ कंपनियों की दिक्कतें पेश हो रही हैं, क्योंकि वे सीधे केंद्र से व्यवहार करना चाहती हैं। परंतु केंद्र निष्क्रिय पड़ा है। हालात यह हैं कि उक्त सवालों के जवाब पाने के लिए जनता को बार-बार कोर्ट का रुख करना पड़ रहा है। जहां कोर्ट आए दिन केंद्र को नोटिस जारी करके, हलफनामा पेश करने को कह रहा है। खैर…,
एक सफल नेतृत्व क्या होता है, एक पुख्ता कार्य प्रणाली क्या होती है और एक सार्थक कार्य योजना क्या होती है, यह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने देश को दिखा दिया है। कोरोना पर गाहे-बगाहे महाराष्ट्र को बदनाम करनेवालों के पास आज जवाब नहीं है क्योंकि उन्हें महाराष्ट्र की किसी नदी में बहती हुई लाशें नहीं मिल पा रहीं, सामान के ठेलों पर लेटे मौत से लड़ते मरीज नहीं दिख रहे, अस्पताल की जलालत झेलकर इलाज से वंचित हुए मरीज नहीं मिल रहे, अस्पताल के बाहर हाथों में सलाइन और कंधों पर ऑक्सीजन सिलेंडर लिए बदनसीब मरीज नहीं दिख रहे। क्यों? तो यहां के बेहतर प्रबंधन और अचूक नीति ने यह तस्वीर उपजने ही नहीं दी। ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए समर्पित होकर काम करना पड़ता है। आलोचनाओं को झेलने की हिम्मत रखनी पड़ती है, तभी कोई ध्रुव तारा बन पाता है, जिसमें खुद का प्रकाश भी होता है और औरों को दिशा दिखलाने का सामर्थ्य भी। गैरों के आभामंडल में रहकर, उधार के प्रकाश से कोई ग्रह तो कहला सकता है, पर वो कभी तारा नहीं बन सकता। उस पर यदि आभामंडल पर ही जनाक्रोश का ग्रहण लगा हो तो ग्रहों पर भी मुसीबत का अंधकार पड़ना तय है। लिहाजा, ग्रहों को भी खुद का प्रकाश हासिल करने की आवश्यकता है। तारा बनने की जरूरत है। इसके लिए दूसरों के आभामंडल से बाहर निकलना पड़ता है। तप करना पड़ता है। इरादों का पक्का बनना पड़ता है। खुद के निर्णय खुद लेने पड़ते हैं और फिर उन निर्णयों पर अटल भी होना पड़ता है। आलोचनाओं का मौखिक नहीं, बल्कि कार्मिक जवाब देना पड़ता है। जनता की जान को राजनीति की बलि चढ़ने से बचाना होता है। और अंतत: सभी समस्याओं का कारगर तरीके से समाधान खोजकर उस पर अमल भी करना पड़ता है, तब आप में तारे की चमक आती है। अन्यथा आपके नसीब में ग्रह और ग्रहण के अलावा कुछ नहीं आता। फिलहाल देश में जनसंख्या के आधार पर सबसे बड़े राज्य, उत्तर प्रदेश की सरकार पर ग्रहण लगा है। यह ग्रहण आंशिक होगा या पूर्ण, यह तो आनेवाला वक्त ही बताएगा, परंतु इस ग्रहण के पीछे कोरोना का कुप्रबंधन तो अवश्य ही बहुत बड़ा कारण होगा।
खैर, सच्चाई यह है कि देश के तमाम भाजपा शासित प्रदेशों ने जिस तरह से गत एक वर्ष से अधिक समय से कोरोना वायरस को लेकर लापरवाही बरती है और उससे निपटने की कोई कारगर नीति नहीं बनाई, उसका खामियाजा गंगा में बहती लाशों और मौत के बड़े-बड़े आंकड़ों के रूप में देश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। यदि समय रहते इन राज्यों ने कोरोना जांच के बड़े-बड़े आंकड़े बनाए होते तो आज मरनेवालों के आंकड़े काफी छोटे होते। तब उन राज्यों में भी खुशहाली होती और देश खुशहाल होता। माना त्रासदी भीषण है। महामारी ऐसी है, जो आज से पहले दुनिया में कभी किसी ने नहीं देखी थी। इसमें हर एक को कुछ-न-कुछ खामियाजा तो भुगतना पड़ेगा ही। महाराष्ट्र ने भी भुगता है, परंतु इन परिस्थितियों में भी जो अपने राज्य को ज्यादा सुरक्षित कर पाता है और अपने ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को बचा पाता है, आर्थिक चक्र को भी कम-से-कम नुकसान होने देता है, वही सफल कहलाता है। नि:संदेह इस रणनीति में कामयाब हुए हैं, तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ही। इसलिए कोरोना प्रबंधन की सफलता में शीर्ष पर कोई नाम है, तो वो उन्हीं का नाम है। महाराष्ट्र का हर व्यक्ति आज अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा होगा। उसे, उसके और उसके परिवार की सुरक्षा को लेकर कोई चिंता नहीं होगी, क्योंकि वो जानता है कि उसके मुख्यमंत्री समस्त महाराष्ट्रवासियों को अपना परिवार मानते हैं और वे अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर न केवल चिंतित हैं, बल्कि उन्होंने अपने परिवार को सुरक्षित रखने का हर संभव रास्ता भी अपना रखा है।
(लेखक अनिल तिवारी जानेमाने पत्रकार व दोपहर का सामना अखबार के निवासी संपादक हैं)